कोरोना (नज़्म)
शायर: इक़बाल अशहर
जब आया था तो नन्हे हाथ छोटे पाँव थे इसके
लहू पीता रहा बढ़ता रहा पल-पल
अब इसके हाथ लंबे और नाख़ुन भी नुकीले हो गए हैं
ये जिनसे शह रगों पर वार करता है मुसल्सल
बहुत से लोग कहते हैं ख़ुदाई क़हर* है ये
जो सदियों हमने बोया था वही तो ज़हर है ये
सुना ये है इसे पहचानने पर भी
हदफ़* इसको बनाया जा नहीं सकता
बड़ा हुशियार है ये
नई दुनिया के लड़ने का नया हथियार है ये
ये जो भी है
वबा है क़हर है या कोई साज़िश है
तिरे बंदों की हर दिन आज़माइश है
तनफ़्फ़ुस* की डगर पथरीली होती जा रही है
हवा ज़हरीली होती जा रही है
दवाएँ कारगर होती नहीं लगतीं
असर अल्फ़ाज़ से रूठा हुआ है
दुआएँ बूढ़ी होती जा रही हैं
मेरे मालिक
हर इक जानिब
अंधेरा ही अंधेरा है
अंधेरी रात की बढ़ती हुई मीयाद* कम कर दे
बशारत* भेज दे इक सुब्ह ए नौ की
करम कर दे करम कर दे
*आफ़त, क्रोध*निशाना*सांस लेना*अवधि*ख़ुशख़बरी, शुभ समाचार
*आफ़त, क्रोध
*निशाना
*सांस लेना
*अवधि
*ख़ुशख़बरी, शुभ समाचार
Poet - Iqbal Ashhar
Posted on - 09.05.2021 at 08:59 p.m
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Concept - Covid-19
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